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संस्कृत व संस्कृति का संवर्धन जरूरीः राज्यपाल

कवि राज चौहान (शिमला)

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने आज यहां राजभवन में हिमाचल संस्कृत अकादमी शिमला के पूर्व सचिव व संस्कृत विशेष अधिकारी उच्चतर शिक्षा विभाग डाॅ. मस्तराम शर्मा की पुस्तक अथर्ववेद, जिसमें प्रतिशाख्य एवं अष्टाध्यायी का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है, का विमोचन किया।

राज्यपाल ने लेखक के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस पुस्तक से व्याकरण शास्त्र के रहस्य को तथा अथर्ववेद के वैदिक व्याकरण सूत्रों से किस प्रकार से शब्द का उच्चारण किया जाना चाहिए, विशेष लाभ के अवसर प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कृत व संस्कृति दोनों की रक्षा व संवर्धन आवश्यकता है। विश्वास साहित्य के क्षेत्र में वेदों की प्राचीनता सम्माननीय है। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा के अनुसार वेद, वैदिक तथा लौकिक संस्कृति के मूल आधार हैं। वैदिक मंत्रों को यथावत उच्चारित करने के लिए वैदिक काल में अनेक परिषदों की स्थापना हुई। इनमें वैदिक मंत्रों को शुद्ध उच्चारण के लिए ध्वनि शास्त्र का स्थाई रखने के लिए, परिषदों का निरूपण हुआ। उन्होंने कहा कि वेदों की रक्षा के लिए प्रातिशाख्यों का निर्माण किया गया है। अथर्ववेद प्रातिशाख्य एवं अष्टाध्यायी का तुलनात्मक अध्ययन इस विषय पर प्राति शाख्य में आए सूत्रों का और अष्टाध्यायी के सूत्रों के साथ तुलना की गई है, जो छात्रों और शिक्षकों को उपयोगी सिद्ध होगी।

डाॅ. मस्तराम ने बताया कि पुस्तक के माध्यम से बताया गया है कि किस प्रकार से इन वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में सांगोपांग अष्टाध्यायी के सूत्रों के द्वारा तथा अथर्ववेद की सूत्रों में साम्य और विषमता स्थापित की गयी है।

लेखक और भाषा एवं संस्कृति विभाग के पूर्व उप निर्देशक सुदर्शन वशिष्ठ तथा उच्चतर शिक्षा निदेशालय में संस्कृत विशेष अधिकारी डाॅ. प्रवीण एवं संस्कृत विद्वान संजय शास्त्री भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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